19स्वी सदी के अंत में लगभग समान उम्र के दो चचेरे भाई जो एक दुसरे से इतना मेल खाते थे कि कभी कभी अनजान लोग उन्हें जुड़वाँ ही समझ जाया करते थे। उन दोनों की कद काठी, पहनावा और बोल चाल काफी हद तक सामान थी। वो दोनों एक दुसरे का साथ इतना पसंद करते कि ज्यादातर समय साथ में गुजारते थे। वो दोनों ही समान भुद्धिवान थे और दोनों ही अपने समाज (पारसी समाज) में कुछ अच्छा और अलग करना चाहते थे।
उन दोनों की शिक्षा यूरोप में पूरी हुई। वहां पर हो रहे industrial revolution को देखते हुए वो बड़े हुए और पढाई पूरी कर India वापिस आ गए। भारत आ कर उन्होंने भारत के लिए सुनहरा सपना देखा और चाह कि वे भी अपना कोई बिज़नस शुरू करे। मगर उनके दीमाग में बिसनेस का कोई idea नही आ रहा था। चूँकि उस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था तो बिसनेस इस तरह का चाहिए था कि उस समय की सिमित स्थितियों के हिसाब से सही होता। उन्होंने सही बिसनेस चुनने के लिए अपने बड़ों से सुझाव लेना उचित समझा। इसलिए वो अपने पिता की उम्र के एक mentor से मिलने गए और सुझाव माँगा।
उनके mentor जो कि तीव्र बुद्धि वाले थे, उनकी बात सुनकर मुस्कुराये और उन्हें के बड़े ही interesting तरीके से हल दिया। Mentor ने उन दोनों को 5-5 रूपये दिए और कहा कि वो दोनों भारतवर्ष में घूम कर आये और अपनी पसंद का कोई भी idea ढूंढ कर लाए। वो दोनों बहुत excited और खुश थे तथा अपनी इस लगभग एक महीने की यात्रा पर निकल गए।
वो दोनों जीवन बदलने वाली इस यात्रा पर निकल गए और उन्होंने न जाने कितने ही लोगों से मुलाक़ात की, गावों और शहरों में गए। तरह तरह की markets को explore किया। फसलों के बारे में जाना, किसानो के बारे में जाना।लोगों की जरूरतों को समझा और फिर महीने बाद बहुत से experiences के साथ ख़ुशी से घर वापिस आये और सीधा अपने mentor से जाकर मिले। वो उम्मीद कर रहे थे कि mentor उनसे ये पूछेंगे कि वो कौन सा बिसनेस करना चाहते हैं? या फिर उन्हें कौन सा बिसनेस पसंद आया? मगर उम्मीद के बिलकुल ही विपरीत mentor ने पूछा “बताओ तुम अब क्या करना चाहते हो”?
अब आप सोच रहें होंगे कि इन दोनों ही बातों में फर्क क्या है? mentor कुछ भी पूछता मतलब तो वही रहता? actually फर्क था। और वो फर्क उतर से सपष्ट होता है। जहाँ एक ने कहा “मैं अपने समाज का सबसे अमीर आदमी बनना चाहता हु”, वहीँ दुसरे ने कहा ” मैं अपने देश के लोगों के लिए कुछ करना चाहता हूँ”। Mentor इस बात में ज्यादा interested नही थे कि वो कौन सा बिसनेस करना चाहते है बल्कि इस बात में interested थे की पुरे देश की हालत जानने के बाद अब उन दोनों का अब मकसद क्या था।
अब आप फिर से पूछेंगे कि इन दोनों के उत्तरों से बिसनेस का क्या लेना देना है?
दोस्तों actually लेना देना है। बिजनेस को फिलहाल किनारे रख मुझे क्या आप बता सकते हैं कि अगर मैं सिर्फ दोनों भाइयों द्वारा दिए गए उत्तरों की उम्र और आकर पूछूँ तो आप कौन से उत्तर को चुनेगे।
- मैं अपने समाज का सबसे अमीर आदमी बनना चाहता हूँ: इस उत्तर की उम्र बस उस इंसान की उम्र के बराबर है क्यूंकि सबसे अमीर व्यक्ति की मौत के बाद कोई और ही अमीर बन जाता है। इस उत्तर का विस्तार बस सबसे आमिर बनने तक ही सिमित है।
- मैं अपने देश के लिए कुछ करना चाहता हूँ: इस उत्तर की उम्र अनंत है क्योंकि ये उत्तर तब तक है जब तक देश है और विस्तार भी अनंत है क्यूंकि लोगों की सेवा का कोई अंत नही है।
चूँकि दोनों के उत्तर में महत्वकाक्षा झलकती है, दोनों ही बिल्कुल सही भी हैं मगर दूसरा उत्तर अंनंत और विस्तारवादी है। दुसरे उत्तर देने वाले ने एक organization की शुरुआत की जिसे आज हम TATA के नाम से जानते हैं। और उत्तर देने वाले महान शख्सियत का नाम स्व श्री जमसेत्जी टाटा है। वो हिंदुस्तान के pioneer industrialist है और उन का मकसद 100 वर्ष से ज्यादा बीत जाने के बाद भी आज अपना काम कर रहा है।
जब भी बात हिंदुस्तान के सबसे प्रतिष्ठित corporate house की होती है तो सबसे ऊपर TATA का नाम आता है। TATA के मकसद में कभी सबसे अमीर बनना नही था सिर्फ समाज सेवा था। और इस मकसद में आज भी वो कामयाब है जो सिर्फ सेवा करना चाहता है उसके लिए न तो कभी कोई competition होता है और न ही कभी हार।
अगर बात growth की करें, तो क्या TATA grow कर रही है, yes! बिल्कुल कर रही है। नतीजे हम सब के सामने हैं। क्या वो अलग अलग fields को explore कर पाए हैं? Yes. बिलकुल कर पाए हैं।
तो ऐसा क्या है कि TATA हिंदुस्तान का सबसे समानित corporate house बन गया और लगातार grow भी कर पा रहा है ? TATA का मकसद बहुत बड़ा और अनंत (infinite) है। देश के लोगों की सेवा का उनका सपना कभी समाप्त नही हो सकता है। वो हर स्थिति में देशवासियों की सेवा का कोई न कोई रास्ता ढूंढ ही लेंगे। TATA के इस INFINITE PURPOSE की वजह से ही आज वो नमक से लेकर हवाई जहाज तक के बिज़नेस में कामयाब हैं। सिर्फ कामयाब नही है सबसे ज्यादा समानित भी हैं। TATA नाम अब किसी का व्यक्तिगत नाम नही है अब तो ये एक शहर का नाम भी है (टाटा नगर) और देश की शान भी (TCS, Jaguar Land Rover) है। TATA अब एक purpose का नाम है एक ऐसा purpose जिसके लिए देश और देशवासी सर्वोपरि है।
अगर कोई आदमी कहता है कि मैं सब से अमीर बनना चाहता हूँ, तो उसके मकसद की एक सीमा (limitation) और एक उम्र होती है मगर जो कहता हैं कि मैं समाज के लिए कुछ बेहतर करना चाहता हूँ तो उस व्यक्ति के मकसद की कोई सीमा नही होती है यहां तक कि उसके न रहने के बाद भी वो जिंदा रहता है हमेशा के लिए। जिनके मकसद बड़े होते हैं वो हर तरह की मुश्किल कसोटियों पर खरा उतरते हैं. ऐसी organisations या लोगों को न तो competition की चिंता होती हैं न हार का डर। बड़े मकसद वाले इस बात को भी मानते हैं की समय समय पर कोई न कोई ऐसा जरुर आएगा जो की किसी particular समय के लिए उनसे भी अच्छा या बड़ा होगा मगर इनका मकसद किसी को पीछे छोड़ना या हराना नही होता। इनका मकसद तो सिर्फ सेवा करना होता है। सेवा करने का मौका हर स्थिति और हालात में मिल ही जाता है। वो जानते हैं कि कुछ भी जाये मगर उनका मकसद अनंत तक जिन्दा रहेगा और अपना काम करता रहेगा।
दोस्तों, कभी भी ये देखना हो कि आपके विचार, बिसनेस या किसी भी काम की उम्र और scope कितना है तो बस उस काम को करने के पीछे के उद्देश्य को देखिये। आपका उद्देश्य ही आगे की सारी कहानी बयाँ कर देता है। उद्देश्य ही ताकत और उर्जा देता है। उद्देश्य ही है जो रास्ते दिखता है. उद्देश्य ही है जो लोगों को आपसे जोड़ता है। उद्देश्य ही है जो उपयुक्त resources को तलाशने में मदद करता है। तो फिर क्यूँ न आज ही आप अपने लिए कोई ऐसा उद्देश्य (purpose) अपनाएं जो इतना शक्तिशाली हो कि जब वो purpose अपने अनंत सफ़र जब निकले तो अपने साथ-साथ आपके नाम को भी अमर करता चला जाये बिलकुल TATA की तरह।
आपका दोस्त
मनोज शर्मा
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Image Sources: Internet
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3 Comments
Anonymous · September 21, 2017 at 10:18 pm
Great .. Keep it up
Anonymous · September 16, 2017 at 8:39 am
Nice!
Anonymous · September 6, 2017 at 9:30 am
VERY GOOD