20सवीं शताब्दी में दुनिया ने एक किशोर को legend और फिर उसी legend को God बनते देखा है। हालांकि ये सब एक दिन में नही हुआ बल्कि सालों में हुआ और न ही ये किसी एक घटना का नतीजा है। मगर फिर भी ये एक घटना ऐसी थी जिसने ने तय कर दिया कि उस इंसान को God कहने से लोगों को परहेज क्यों नही है।

ये बात 1999 विश्व कप की है। ‘भारत बनाम कीनिया मैच’। विश्वकप में अपना सफ़र जारी रखने के किये भारत को वो मैच जीतना ही था। मगर उस मैच में भारत के सबसे मजबूत खिलाड़ी Sachin पिछले 4 दिन से वहां नहीं थे।

वो अपने पिता रमेश तेंडुलकर को अंतिम श्रंद्धाजलि देने वापिस भारत गए थे। सचिन के पिता की मृत्यु 19 मई 1999 को मुम्बई में बीमारी के चलते हुई। जिस वजह से सचिन को विश्वकप छोड़ कर अपने घर जाना पड़ा ताकि वो अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सकें। और सभी लोग यही मानते थे कि सचिन अब विश्वकप में वापिसी नही कर पाएंगे।

कहतें हैं legend भी इंसान ही होते हैं। और हर इंसान की तरह legend मगर कुछ legends ऐसा कुछ कर जाते हैं कि उन्हें God या भगवान कहना बिल्कुल उचित होता है। एक आम इंसान जहां भावनाओं को समेटने में असमर्थ हो जाता है, वहीं एक legend कुछ ऐसा कर जाता है जो उसे भगवान की श्रेणी में खड़ा कर देता है। सचिन अपने पिता के सबसे करीब थे। पिता की अचानक मौत सचिन के लिए एक बड़ा सदमा थी। मगर वो जानते थे कि सचिन को “सचिन” बनाने के पीछे उनके पिता का सबसे अहम और बड़ा योगदान था। और उनके पिता का ये भी सपना था कि वो अपने बेटे को विश्व कप अपने हाथों में उठाते देखें।

विश्व कप में भारत की स्थिति देख सचिन समझ गए थे कि उन्हें उस समय के हिसाब से कहाँ होना चाहिए। अपने पिता को और उनके सपनों को याद वो मैच खेलने england चल दिये। सचिन जानते थे कि उनके देशवासियों की नजर अपने टीम के ऊपर है और उम्मीद लगा के बैठे है कि भारत विश्व कप पर अपना कब्जा जमा दे। और ये भी जानते थे कि उस सने उनके परिवार को उनके साथ कि सबसे ज्यादा जरुर्रत है। मगर उन्होंने देश को चुना।

23 मई भारत 92 रन पर 2 विकटें गवाँ चुका था। और फिर सचिन मैदान में आये। उस दिन सचिन ने उस series की सबसे अच्छी पारी खेली और आखिरी बॉल में six लगाकर 101 बॉल में 140 रन की not out पारी खेली।

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दोस्तों,

सबसे मुश्किल परिस्थियों से निपटने और अपनी भावनाओं को संभालना की काबिकीयत महान लोगों की निशानी है। इस तरह की मानसिक स्थिति में खेलना तो दूर लोग अपने आप को भी मुश्किल से संभाल पाते है। जरा सोचिए उस आदमी की मानसिकता कितनी शक्तिशाक्ति होगी जो अपने emotions को control कर बेहतर तरीके से प्रदार्शन कर पाए। 23 मई 1999 को सचिन ने ऐसा ही एक उदाहरण पेश कर ये साबित कर दिया कि उन्हें क्रिकेट का भगवान क्यों कहा जाता है।

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Manoj Sharma

Writer, Trainer and Motivator

8 Comments

Yashpal Sharma · October 7, 2017 at 3:27 pm

I am a v v v big fan of this living legend. I love you sachin

GEETA · October 5, 2017 at 3:55 pm

सचिन पूरे भारत वर्ष की शान है

Dev · October 1, 2017 at 11:57 am

Bahut accha

Free Trials Garcinia Cambogia · September 30, 2017 at 11:09 pm

May this message bring you a great deal of prosperity in the future.
I loved it.

Akshay Sharna · September 28, 2017 at 8:44 pm

Proud of sachin

Nisha · September 28, 2017 at 3:14 pm

The God of cricket .. Greatest in the worls

Jayant Sharma · September 28, 2017 at 3:11 pm

Very good article Sir, but I have one question. Is it logical to call a person God?

प्रतिबद्धता: The Commitment | The Happy Minds · September 28, 2017 at 2:50 pm

[…] “सचिन को यूँ ही “GOD” नहीं कहते” […]

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