प्रेरणा!!
दोस्तों, करीब करीब 2 महीने बाद मैं वापिस blog पर कुछ post करने जा रहा हूँ। इन दो महीनों में ऐसा नहीं था कि मेरे पास समय की कमी थी या ऐसा भी नहीं था कि मैं कुछ लिखना नहीं चाहता था। बस बात इतनी सी है कि मैं नई post लिखने के लिए प्रेरित नहीं था। हालांकि मुझे इस ब्लॉग के जरिये मिलने वाला आप सभी पाठकों का प्यार और encouragement बहुत पसंद है मगर न जाने क्या था कि मैं कोई नई पोस्ट को लिखने के लिए कोई idea generate ही नहीं कर पा रहा था।
तो मैंने सोचा क्यों न आज इस “प्रेरणा सार” या “Motivational Essance“ शब्द की ही जड़ तक पहुचा जाए। कुछ प्रश्नों के उत्तर आज आप लोगों को इस post से मिलने वाले हैं। जैसे कि:
- आखिर ये प्रेरणा का स्त्रोत होता क्या है?
- सफल लोग आखिर निरंतर कुछ करने के लिए स्वयं को प्रेरित कर कैसे लेते हैं?
- क्यों दर्द ही कुछ लोगों के सफलता की कहानी कैसे बनता है?
मैं इस पोस्ट की शुरुआत असहायों के मसीहा के एक जीवन वृतांत से करना चाहता हूं। उस व्यक्ति का नाम है “नारायनन कृष्णनन“।
नारायनन तमिल नाडु के मदुरई में ‘अक्षय‘ नाम से एक trust चलाते हैं जहां रोजाना लगभग 500 बेसहाय, बेघर, बूढ़े एवं मानसिक रूप से विकलांग भूखे लोगों को तीनों वक़्त का खाना परोसा जाता है। वह रोजाना खाना pack कर अपनी टीम के साथ मदुरई में 200km का सफर तय करते है और हर असहाय को तीनों वक़्त का खाना पहुँचाते है। इस के साथ-2 उनके बाल काटने, सफाई और स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते है।
मगर 1981 में जन्मे नारायनन बंगलोर के Taj Hotel से prestigious award winning chef हैं। वो अपने काम में इतने माहिर थे कि 2002 में उन्हें Switzerland में एक high paying high profile chef के तौर पर चुन लिया गया था। एक दिन जब वह Switzerland के रवाना होने ही वाले थे तो कुछ ऐसा हुआ कि वो अपने जीवन के उच्चतम सपने के इतना करीब होते हुए भी पूरा न कर सके।
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दरअसल जब वह अपनी Switzerland की flight लेने से कुछ दिन पहले मदुरई के एक मंदिर जा रहे थे तो उन्होंने देखा कि मंदिर के रास्ते में भूख से प्रताड़ित एक अत्यंत बृद्ध व्यक्ति अपने ही मल (human waste) को खा रहा था। इस दृश्य ने नारायनन को झकझोर कर रख दिया। वे अपनी कार से उतरे और उस बूढ़े व्यक्ति को नजदीकी hotel में ले गए और ढेर सारा खाना order किया। इतना खाना देख वृद्ध की आंखे भर आईं और वृद्ध के चेहरे के भाव देख नारायनन की आंखे भी नम हो गई।
नारायनन उस घटना के बाद कभी न तो Switzerland गए और न ही अन्य किसी बड़े hotel में काम कर सके। खाना बनाने में माहिर आज वो व्यक्ति अपने हुनर का इस्तेमाल बस असहाय लोगों को खुशियां बांटने में कर के अपने जीवन की सफलता मनाता है। उन्हें 2010 में CNN TOP 10 HEROS से भी नवाजा गया है।
यह कहानी बताती है कि दर्द एक महान कार्य का सार हो सकता है। इस तरह की न जाने कितनी ही कहानियां आप ने सुनी या पढ़ी होंगी जिसमे किसी दर्द से छुटकारा पाने की छटपटाहट या किसी आनंद को पाने की लालसा किसी बड़े एवम महान कार्य का सार बन जाता है। आइये इस को समझने की कोशिश करते हैं।
“प्रेरणा” या “motivation”एक ऐसी स्थिति है जिसकी जरूरत लोगों को हर वक्त रहती है, कुछ करने के लिए भी और कुछ न करने के लिए भी।
विज्ञान के अनुसार किसी भी काम को करने की आप की चाहत को प्रेरणा कहते है। यह एक ऐसी मनोवैज्ञानिक स्थिति होती है जो आप को कुछ करने के लिए मजबूर करती है। मैं यहाँ इस शब्द पर कुछ ऐसे विचार सांझा करना चाहता हुँ जो इस से ज्यादा meaningful और उपयोगी हो सकते हैं।
जैसा कि लेखक Pressfeild ने अपनी किताब The War Of Art में लिखा है,” प्रेरणा एक ऐसी स्थिति है जब कुछ न करने का दर्द कुछ करने के दर्द से ज्यादा हो जाये“। इसका मतलब है कभी कभी जीवन में बदलाव करना या आरामदायक स्थिति को छोड़ना ज्यादा आनंदमय होता है।
कभी कभी जीवन में कुछ ऐसा हो जाता है कि उठकर कुछ करना ज्यादा आरामदायक और ज्यादा सुकून भरा हो जाता है। जैसे कि Gym में मुश्किल excercise करके पसीना बहाना और दर्द सहन करना बैठ कर आराम करने से ज्यादा आनंदमय हो जाता है।
मुझे लगता है कि शायद यही प्रेरणा का सार है। बदलाव को टालना और action से बचना निश्चित ही आरामदायक होता है मगर जब हम प्रेरित (motivated) होते हैं तो इसका उलट कष्टदायक होने के बावजूद भी आनंदमय होता है।
इसे मनोवैज्ञानिक तरीके से समझें तो मनुष्य का मष्तिष्क किसी भी स्थिति में तब तक ही टीका रह सकता है जब तक वह स्थिति दर्द (perceived pain) के threshold को touch न कर ले। कहने का भाव है किसी भी काम को तब तक ही टाला जा सकता है जब तक इसे न करने के नतीजे से होने वाला दर्द उस सिमा तक न पहुच जाए जिस से आगे का दर्द आपके लिए सहन कर पाना नामुमकिन जो जाए।
इसे एक और उदाहरण के साथ समझने की कोशिश करते हैं। किसी धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के लिए धूम्रपान को छोड़ना बहुत आसान हो जाता है जिस दिन धूम्रपान के कारण होने वाली पीड़ा, उसकी सहन शक्ति के पार हो जाये। किसी शराबी की आदत उस दिन स्वतः ही छूट जाती है जिस दिन शराब के कारण उत्पन पीड़ा उसकी सहन क्षमता से परे हो जाये। और ऐसा अक्सर तब होता है जब कोई लाइलाज बीमारी इंसान के शरीर में घर कर खेती है। बीमारी से उत्पन पीड़ा उसे स्वतः ही बुरी आदत छुड़वा देती है।
कोई व्यक्ति स्वास्थ्य के प्रति उस दिन स्वतः ही motivate तो जाता है जिस दिन अस्वस्थ शरीर का दर्द उसकी सहने की सीमा से पर हो जाता है। आखिर कुछ तो कारण है कि माता-पिता जिस बच्चे को पूरा वर्ष पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं कर पाते हैं वह बच्चा परीक्षा समीप होने पर स्वतः ही पूरी-2 रातें पढ़ने मे बिता देता है।
सुख-दुख का सिद्धांत। Pain & Pleasure Doctrine.
मनुष्य का मष्तिष्क ‘सुख और दुख’ के सिद्धांत पर कार्य करता है। यह हर उस स्थिति से हर हाल मैं बचने के लिए आपको प्रेरित करता है जिस को करने से आप को दर्द मिलता हो। और हर उस स्थिति की तरफ आकर्षित होता है जिस में आनद या सुख मिलता हो। आपका मन किसी कार्य से उतना ही तेजी से दूर भागता है जिसमे जितना ज्यादा दर्द मिलता हो और उस कार्य को करने में उतना ही छटपटाता है जिसमे जितना ज्यादा सुख या आनंद मिलता हो।
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इस सिद्धान्त से साफ है कि अगर किसी कार्य में आप को बहुत आनद और सुख की अनुभूति हो तो उसे करने से रोकने के लिए कोई चुनौती आपके आगे टिक नहीं सकती और कोई कार्य में दर्द की अनुभूति हो तो भी किसी तरह का बाहरी motivation आपसे उस कार्य को करवा नहीं सकता है।
दोस्तों, यह एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इस सिद्धांत की समझ और इसका सही उपयोग जीवन बदल सकता है।
अब प्रश्न ये उठता है कि कठिन कार्य करना, बुरी आदत छोड़ना, नई आदत अपनाना तथा मेहनत करना हमेशा ही शरीर के लिए कष्टदायक होता है तो कुछ लोग इसे फिर भी कर क्यों कर जाते है या शारीरिक कष्ट मिलने के बावजूद स्वयं को motivate कैसे कर लेते हैं?
Real & Imaginary Pain, Real & Imaginary Pleasure
आइये इस सिद्धांत को थोड़ा गहराई से जानते है।
1) जब भी बात pain & pleasure अथवा सुख-दुःख की हो तो यब बात आपके शरीर के बारे में नहीं अपितु आपके मन (Mind) के बारे में होती है। आपने महसूस किया होगा कि बेशक किसी कार्य को करने से कुछ शारीरिक तकलीफ होती हो मगर इसे करने से अगर मानसिक सुकून या सुख मिल रहा हो तो ऐसे कार्य आप आसानी से कर जाते है। इसका मतलब यह है कि आपका हर action शारीरिक नहीं मानसिक आनंद पाने के लिए प्रेरित होता है।
2) क्योंकि यह सारी बातें मन (Mind) के स्तर पर हो रही है इसलिए यह जानना भी अति आवश्यक है कि कोई भी कार्य स्वतः से ही सुख-दुख से जुड़ा नहीं होता है। कार्य प्राकृतिक रूप से nutral होता है। हर कार्य सभी लोगों के लिए एक समान आनंदमय या फिर एक समान पीड़ादायक नहीं होता। इसे सुख या दुख की अनुभूति से जोड़ने का काम हर व्यक्ति अपने-2 हिसाब से करता है। किसी भी कार्य से जुड़ी सुख-दुःख की आपकी अनुभूति आपके past experiences से भी बहुत ज्यादा प्रभावित होती है।
मुझे 3 Idiots फ़िल्म का वो scene याद आ रहा है जहाँ Rancho अपने दोस्त Raju से कहता है कि अगर आप चाहें तो अपने दिल को आप बेवकूफ बना सकते है और फिर कहता है ‘आल इस वैल’।
स्वयं को प्रेरित करने का आसान तरीका। Simplest Technique To Motivate Yourself?
आज मैं आपको एक बहुत powerful technique बताना चाहता हूँ जिस की मदद से आप किसी भी कार्य को करने के लिए स्वतः से ही motivate कर सकते है।
आपके जीवन में प्रायः दो स्थितियां हो सकती है:
1) या तो ऐसे काम को करने की आदत अपनानी है जिस से फायदा हो और जिसको करने का आपका मन बिल्कुल न करता हो। जैसे कि सवेरे जल्दी उठने और व्यायाम की आदत।
2) या तो ऐसे काम को करने की आदत को छोड़ना है जीस से नुकसान हो रहा हो और चाह के भी आप वह काम या आदत छोड़ नही पा रहे है जैसे कि धूम्रपान की आदत।
हल (Solution):
Step 1) जिस आदत को अपनाना है उसके वर्तमान के या भविष्य के फायदों की बड़ी से बड़ी लिस्ट तैयार करें। और जिस आदत को छोड़ना हो उस के वर्तमान या भविष्य में मिलने वाले नुकसान की लिस्ट तैयार करें।
Step 2) फायदों की लिस्ट के साथ आनंद (pleasure) को connect करें जबकि नुकसानदायक लिस्ट के साथ दर्द (Pain) को connect करें। Pain हो या Pleasure, दोनो ही cases में emotional intensity highest level यानी threshold पर ले जाने की कोशिश करें। Feeling connect करने के लिए visualization सबसे बेहतरीन तरीका है।
Step 3) हर बार related कार्य को करने से पहले लिस्ट को जरूर पढ़ें। ऐसा करने से लिस्ट से जुड़े आपके emotional component आपके मन को control या direct करते हैं।
नारायनन के जीवन की उस दिन की घटना ने भी ऐसा ही कुछ किया। एक ही घटना ने उनके मन के emotional pain के उनके threshold level को पार कर लिया और उनके मन उस pain से बचने के उन्हें कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित किया जो अन्यथा वो कभी नहीं कर पाते।
Note: It require CONSCIOUS EFFORTS to connect PLEASURE to desired behaviours and PAIN to unwanted behaviours. Emotional Intensity plays quantum role. Little the intensity of emotions greater the conscious efforts required or vice-versa.
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3 Comments
Vijay · December 27, 2018 at 9:46 am
Very nice
Ashwani · December 26, 2018 at 10:18 pm
Wonderfully written …
Anonymous · October 1, 2018 at 10:37 am
Very nice